Friday 6 November 2015

भैया दूज: पवित्र रिश्ते का पर्व




संदीप कुमार मिश्र: भाई-बहन का पवित्र रिश्ता  जो जुड़ा है आपसी स्नेह और विश्वास पर।भाई तो बहन के लिए हर गम झेलने के लिए तैयार रहता है तो बहन भी अपने भाई के लिए भगवान से हर सुख,आराम की दुआ तो मांगती ही  है साथ ही अपनी उम्र भी अपने भाई को लग जाने की दुआ मांगती हैं।बहन-भाई के इसी पवित्र रिश्ते का प्रतीक है भैया दूज।ये त्यौहार ही है जो हमारे रिश्तों को तो मजबूत करतें ही हैं वहीं आपसी प्यार और मुहब्बत को बढ़ाने के साथ इन्हें मजबूत करतें हैं,और हमें बताते हैं कि ये पवित्र रिश्ते यूं ही बने रहें।दरअसल दीपावली के पांच दिवसीय इस महा उत्सव में भईया दूज का अपना अलग ही महत्व है । जरा कल्पना किजिए मित्रों भाई - बहन के बचपन के वो दिन भी क्या होते हैं। कभी भाई रूठ जाता है तो कभी बहना।कभी बहन भाई को मनाती है तो कभी भाई बहन को।इस मीठी और तीखी नोक झोंक में होता है अपना ही मजा।बमारे तीज त्योहार रिश्तों को मजबूत और आत्मीयता प्रदान करते हैं। दीवाली के तीसरे दिन आता है भैया दूज।ये कार्तिक शुक्ल पक्ष की व्दितीय तिथि को मनाया जाता है।भाई बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है भैया दूज जिसे हिन्दु समाज में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।इस दिन बहनें अपने भाई की लम्बी आयु  और सुख समृद्धि की कामना करती है...तो वही भाई अपनी बहन को खुश रखने के लिए और शगुन के रूप में  उन्हें उपहार देते है।
भाई दूज पर भाई को तिलक करने का समय मुहूर्त-
टीका मुहूर्त समय - 01:09 से 03:16
समयावधि - 2 धंटा 7 मिनट्स

भैया दूज का पर्व भी जुड़ा है भाई बहन के आपसी स्नेह और विश्वास।इसके पीछे क्या है कथा।बहन भाई को वी कहकर की बुलाती है वी का अर्थ है बहादुर...सूरमा...कहते हैं कि पहले जब युद्ध के दौरान बहनों के भाई युद्ध में जाते थे तो बहनें अपने भाईयों को तिलक लगाकर युद्ध के मैदान में भेजती थीं और अपनी उम्र भाई को लग जाने का आशीर्वाद देती थी।भाई को बहन की इज्जत का रखवाला यानि रक्षक माना जाता है।एक बहन के सात भाई थे सबसे छोटा भाई उसे बड़ा प्यार करता था।भैया दूज के दिन जब तक वो अपनी बहन से टीका नहीं लगवा लेता था।वो कुछ भी खाता पीता नहीं था।एक दिन उसकी पत्नी ने कहा कि अगर तुम्हारी बहन की शादी दूर हो गई तो तुम क्या करोंगे तो इस पर वो बोला कि वो अपनी बहन की शादी दूर करेगा ही नहीं।उसने अपने माता पिता से कहकर अपनी बहन की शादी नज़दीक के गांव में करा दी लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे उसे बहनोई जो मिला वो अपने ससुराल वालों को पसंद नहीं करता था। यही नहीं उसने अपनी पत्नी को कह रखा था कि  तुम्हारे मायके वाले मेरे घर नहीं सकते। ये सोच-सोच कर उस बहन का रो रो कर बुरा हाल हो गया और अपने पति का संदेश मायके भेज दिया।अब भईया दूज का त्यौहार भी गया लेकिन भाई का मन नहीं माना और वो नहा धोकर बहन के घर टीका लगाने पहुंच गया।जैसे ही वो अपनी बहन के घर पहुंचा तो उसके बहनोई ने उसे सात तालों में बंद कर दिया और खुद काम करने चला गया। बहन का ये भाई वेश बदलना जानता था।वे कुत्ते का छोटा पिल्ला बनकर नाली के रास्ते अपनी बहन के पास पहुंचा जहां बहन रो-रो कर हल्दी पीस रही थी और मन ही मन सोचती है कि वो हल्दी तो पीस रही है क्या वो अपने भईया को टीका लगा पाएगी।तभी कुत्ते का पिल्ला पहुंचता है,बहन दुखी तो होती है गुस्से में आकर हल्दी से सने हाथ को  कुत्ते को मार देती है।कुत्ते का पिल्ला अपने मुंह से  सोने का सिक्का फेंक कर नाली के रास्ते चला जाता है।बहनोई कर ताला खोलता है तो देखता है कि भाई के माथे पर पांच टीके लगे होते हैं, वो अपनी पत्नी को पूछता है कि तुमने अपने भाई को पांच टीके क्यों लगाए।वो हैरान हुई कहती है कि मैने तो अपने भाई को देखा तक नहीं।एक टीका तो दूर की बात और आप पांच टीके लगाने की बात कर रहे हो।हां, वो कुत्ते के पिल्ले वाली बात दुहराती है ,ये बात सुनकर बहनोई को अपनी भूल का अहसास हो जाता है और उसने माफी मांगते हुए कहा कि मुझे दुख है कि मैं भाई -बहन के सच्चे प्यार में रूकावट बना।लेकिन सच्चा प्यार कभी नहीं टूटता,।इस तरह भाई-बहन के दिन फिरे  और वैसे ही सबके प्राचीन काल से चली रही इस प्रथा को आज भी  धूमधाम से हमारे देश में मनाया जाता है

एक और कथा के अनुसार भाई की खुशहाली , कल्याण और वृद्धि के लिए बहनें मांगलिक विधान भी करती है।यमुना तट पर तो भाई -बहन का इक्ट्ठे भोजन करना कल्याणकारी माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार तो इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने जाते हैं।इसी प्राचीन कथा के अनुसार भाई अपनी बहनों से मिलते हैं और बहनें अपने भाई की सम्मान पूर्वक पूजा करती हैं।ये त्योहार बहन-भाई के आपसी सद्भावना और प्रेम का पर्व है जो एक दूसरे से निष्कपट प्रेम का प्रतीक है एक बार कार्तिक शुक्ल की व्दितीय को यमराज अपनी बहन यमुना के घर में अचानक जाते है तो बहन अपने भाई का बड़ा आदर सत्कार करती है।तरह तरह के पकवान बनाकर खिलाती है और साथ माथे पर तिलक लगाती है, जिससे यमराज अपनी बहन से बहुत खुश होते हैं। और यमुना से मन वांछित वर मांगने को कहते हैं।मनवांछित फल की बात सुनकर यमुना ने कहा भैया अगर आप मुझे कुछ देना चाहते है तो आज के दिन हर वर्ष आप मेरे पास आया करें यमुना की प्रार्थना यमराज ने स्वीकार कर ली तभी से बहन भाई का ये त्यौहार मनाया जाता रहा है।
पूरे भारतवर्ष में मनाए जाने वाले इस त्यौहार को अलग-2  नामों से जाना जाता है।इसे भाई कोटा, भाई बीज,टीका भाईदूज और भाऊबीज के नाम से जाना जाता है।भाई दूज के पूजा के लिए पूजा की थाली में सुपारी,फल,रोली,धूप,मिठाईयां रखकर इस में दीप बहने जलाती हैं।इस दिन यमव्दितीया की कथा भी सुनी जाती है।कहते हैं यमुना अपने प्रिय भाई को बार बार अपने घर आने का सन्देश भेजती है लेकिन हर बार निराशा पाती हैं, आखिर में यमुना का एक अनुरोध सफल होता है और यमराज अपनी बहन के घर जा पहुंचते हैं। अपने भाई को अपने द्वार पर देखकर यमुना की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता।और यमुना अपने भाई को टीका लगा कर अपने हाथों से बना हुआ भोजन खिलाया।कहते हैं कि अगर इस समय आसमान में चील उड़ता दिख जाए तो बड़ा ही शुभ होता है।


भैया दूज का ये पर्व बहन का भाई के प्रति त्याग का प्रतीक है तो भाई भी अपनी बहन के लिए हर दुख सहन तो करता है और उसकी रक्षा करने के लिए हमेशा तैयार रहता है सभी बहन भाई इसी तरह खुश रहें और उनके प्यार में ये मिठास हमेशा बरकरार रहे और वो इसी तरह मिलजूल कर प्यार के इस पर्व को मनाते रहें।


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